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रोज़ तब्दील हुआ है मिरे दिल का मौसम | शाही शायरी
roz tabdil hua hai mere dil ka mausam

ग़ज़ल

रोज़ तब्दील हुआ है मिरे दिल का मौसम

तनवीर सामानी

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रोज़ तब्दील हुआ है मिरे दिल का मौसम
रोज़ कमरे में मिरे सर्द हवा आई है

फ़िक्र की आँच में पिघले तो ये मालूम हुआ
कितने पर्दों में छुपी ज़ात की सच्चाई है

रोज़ आँखों में उतर जाता है ख़ंजर कोई
इन दिनों अहल-ए-नज़र को ग़म-ए-बीनाई है

मेरे चेहरे से जो पढ़ सकते हो पढ़ लो यारो
दिल की हर बात मिरे लब पे कहाँ आई है

अपने काँधे पे लिए फिरती है एहसास का बोझ
ज़िंदगी क्या किसी मक़्तल की तमन्नाई है

क्यूँ न 'तनवीर' फिर इज़हार की जुरअत कीजे
ख़ामुशी भी तो यहाँ बाइस-ए-रुस्वाई है