जिस तरफ़ बैठते थे वस्ल में आप
उसी पहलू में दर्द रहता है
तअशशुक़ लखनवी
कभी तो शहीदों की क़ब्रों पे आओ
ये सब घर तुम्हारे बसाए हुए हैं
तअशशुक़ लखनवी
कभी तो शहीदों की क़ब्रों पे आओ
ये सब घर तुम्हारे बसाए हुए हैं
तअशशुक़ लखनवी
मैं बाग़ में हूँ तालिब-ए-दीदार किसी का
गुल पर है नज़र ध्यान में रुख़्सार किसी का
तअशशुक़ लखनवी
मौज-ए-दरिया से बला की चाहिए कश्ती मुझे
हो जो बिल्कुल ना-मुवाफ़िक़ वो हवा पैदा करूँ
तअशशुक़ लखनवी
मौज-ए-दरिया से बला की चाहिए कश्ती मुझे
हो जो बिल्कुल ना-मुवाफ़िक़ वो हवा पैदा करूँ
तअशशुक़ लखनवी
मुझ से क्या पूछते हो दाग़ हैं दिल में कितने
तुम को अय्याम-ए-जुदाई का शुमार आता है
तअशशुक़ लखनवी