बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजे
आप को हुस्न मुबारक हो मिरा दिल मुझ को
तअशशुक़ लखनवी
बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजे
आप को हुस्न मुबारक हो मिरा दिल मुझ को
तअशशुक़ लखनवी
बहुत मुज़िर दिल-ए-आशिक़ को आह होती है
इसी हवा से ये कश्ती तबाह होती है
तअशशुक़ लखनवी
चला घर से वो बहर-ए-हुस्न अल्लाह रे कशिश दिल की
अजब क़तरा है जो खींचे लिए जाता है दरिया को
तअशशुक़ लखनवी
चला घर से वो बहर-ए-हुस्न अल्लाह रे कशिश दिल की
अजब क़तरा है जो खींचे लिए जाता है दरिया को
तअशशुक़ लखनवी
चिराग़-दाग़ मैं दिन से जलाए बैठा हूँ
सुना है जो शब-ए-फ़ुर्क़त सियाह होती है
तअशशुक़ लखनवी
देते फिरते थे हसीनों की गली में आवाज़
कभी आईना-फ़रोश-ए-दिल-ए-हैरान हम थे
तअशशुक़ लखनवी