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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

वही माबूद है 'नाज़िम' जो है महबूब अपना
काम कुछ हम को न मस्जिद से न बुत-ख़ाने से

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम




ये किस ज़ोहरा-जबीं की अंजुमन में आमद आमद है
बिछाया है क़मर ने चाँदनी का फ़र्श महफ़िल में

सय्यद यूसुफ़ अली खाँ नाज़िम




अब इक रूमाल मेरे साथ का है
जो मेरी वालिदा के हाथ का है

सय्यद ज़मीर जाफ़री




अब इक रूमाल मेरे साथ का है
जो मेरी वालिदा के हाथ का है

सय्यद ज़मीर जाफ़री




बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
वफ़ा-ए-दोस्ताँ बहर-ए-मशक़्कत साथ चलती है

सय्यद ज़मीर जाफ़री




चीज़ मिलती है ज़र्फ़ की हद तक
अपना चमचा बड़ा करे कोई

सय्यद ज़मीर जाफ़री




चीज़ मिलती है ज़र्फ़ की हद तक
अपना चमचा बड़ा करे कोई

सय्यद ज़मीर जाफ़री