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ख़ुलासा ये मिरे हालात का है | शाही शायरी
KHulasa ye mere haalat ka hai

ग़ज़ल

ख़ुलासा ये मिरे हालात का है

सय्यद ज़मीर जाफ़री

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ख़ुलासा ये मिरे हालात का है
कि अपना सब सफ़र ही रात का है

अब इक रूमाल मेरे साथ का है
जो मेरी वालिदा के हाथ का है

अना क्या इज्ज़ को गिर्दाब समझो
बड़ा गहरा समुंदर ज़ात का है

ख़ुदा अशआ'र-ए-रस्मी से बचाए
ये क़त्ल-ए-आम सच्ची बात का है

तपिश कितनी है माँ के आँसुओं में
ये पानी कौन सी बरसात का है

मुझे बेहतर है कच्ची क़ब्र अपनी
किसी गुम्बद से जो ख़ैरात का है