मौत के खूँ-ख़्वार पंजों में सिसकती है हयात
आज है इंसानियत की हर अदा सहमी हुई
सय्यद शकील दस्नवी
फिर कोई चोट उभरी दिल में कसक सी जागी
यादों की आज शायद पुर्वाई चल रही है
सय्यद शकील दस्नवी
फिर कोई चोट उभरी दिल में कसक सी जागी
यादों की आज शायद पुर्वाई चल रही है
सय्यद शकील दस्नवी
रिश्ता रहा अजीब मिरा ज़िंदगी के साथ
चलता हो जैसे कोई किसी अजनबी के साथ
सय्यद शकील दस्नवी
'शकील' हिज्र के ज़ीनों पे रुक गईं यादें
इसी मक़ाम पर आ कर ठहर गई शब भी
सय्यद शकील दस्नवी
'शकील' हिज्र के ज़ीनों पे रुक गईं यादें
इसी मक़ाम पर आ कर ठहर गई शब भी
सय्यद शकील दस्नवी
उस से बछड़ा तो यूँ लगा जैसे
कोई मुझ में बिखर गया साहब
सय्यद शकील दस्नवी