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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

ये और बात कि 'अख़्तर' हवेलियाँ न रहीं
खंडर में कम तो नहीं अपनी आबरू रौशन

सुल्तान अख़्तर




ये और बात कि 'अख़्तर' हवेलियाँ न रहीं
खंडर में कम तो नहीं अपनी आबरू रौशन

सुल्तान अख़्तर




माना कि हम वतन से अज़ीज़ों से दूर हैं
तहज़ीब से जुदा हैं न उर्दू ज़बाँ से दूर

सुलतान फ़ारूक़ी




मैं अब्र-ओ-बाद से तूफ़ाँ से सब से डरता हूँ
ग़रीब-ए-शहर हूँ काग़ज़ के घर में रहता हूँ

सुलतान रशक




मैं अब्र-ओ-बाद से तूफ़ाँ से सब से डरता हूँ
ग़रीब-ए-शहर हूँ काग़ज़ के घर में रहता हूँ

सुलतान रशक




सुख़नवरी से है मक़्सूद मअ'रिफ़त फ़न की
मैं बे-हुनर हूँ तलाश-ए-हुनर में रहता हूँ

सुलतान रशक




हम लोग न उलझे हैं न उलझेंगे किसी से
हम को तो हमारा ही गरेबान बहुत है

सुरूर बाराबंकवी