लहू में डूबी है तारीख़-ए-ख़िल्क़त-ए-इंसाँ
अभी ये नस्ल है शाइस्ता-ए-हयात कहाँ
सिराज लखनवी
न मोहतसिब की ख़ुशामद न मय-कदे का तवाफ़
ख़ुदी में मस्त हूँ अपनी बहार में गुम हूँ
सिराज लखनवी
न पी सको तो इधर आओ पोंछ दूँ आँसू
ये तुम ने सुन लिए इस दिल के सानेहात कहाँ
सिराज लखनवी
नमाज़-ए-इश्क़ पढ़ी तो मगर ये होश किसे
कहाँ कहाँ किए सज्दे कहाँ क़याम किया
सिराज लखनवी
नमाज़-ए-इश्क़ पढ़ी तो मगर ये होश किसे
कहाँ कहाँ किए सज्दे कहाँ क़याम किया
सिराज लखनवी
नज़्र-ए-ग़म शायद हर अश्क-ए-ख़ूँ-चकाँ करना पड़े
क्या ख़बर कितनी बहारों को ख़िज़ाँ करना पड़े
सिराज लखनवी
फिर भी पेशानी-ए-तूफ़ाँ पे शिकन बाक़ी है
डूबते वक़्त भी देखा न किनारा हम ने
सिराज लखनवी