रात इक नादार का घर जल गया था और बस
लोग तो बे-वज्ह सन्नाटे से घबराने लगे
शौकत परदेसी
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शरीक-ए-दर्द नहीं जब कोई तो ऐ 'शौकत'
ख़ुद अपनी ज़ात की बेचारगी ग़नीमत है
शौकत परदेसी
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'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
अपनी निगाह में जो कभी आसमाँ रहे
शौकत परदेसी
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'शौकत' वो आज आप को पहचान तो गए
अपनी निगाह में जो कभी आसमाँ रहे
शौकत परदेसी
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तुम ही अब वो नहीं रहे वर्ना
वही आलम वही ख़ुदाई है
शौकत परदेसी
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उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ
महसूस ये हुआ कि ज़माना बदल गया
शौकत परदेसी
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उन की निगाह-ए-नाज़ की गर्दिश के साथ साथ
महसूस ये हुआ कि ज़माना बदल गया
शौकत परदेसी
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