ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
अजनबी वो हैं कि थी जिन से शनासाई भी
शौकत परदेसी
ना-शनासान-ए-मुहब्बत का गिला क्या कि यहाँ
अजनबी वो हैं कि थी जिन से शनासाई भी
शौकत परदेसी
निगाह को भी मयस्सर है दिल की गहराई
ये तर्जुमान-ए-मोहब्बत है बे-ज़बाँ न कहो
शौकत परदेसी
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
उन को इस आलम में भी ग़म-आश्ना कहना पड़ा
शौकत परदेसी
फूँक कर सारा चमन जब वो शरीक-ए-ग़म हुए
उन को इस आलम में भी ग़म-आश्ना कहना पड़ा
शौकत परदेसी
क़रीब से उसे देखो तो वो भी तन्हा है
जो दूर से नज़र आता है अंजुमन यारो
शौकत परदेसी
रात इक नादार का घर जल गया था और बस
लोग तो बे-वज्ह सन्नाटे से घबराने लगे
शौकत परदेसी