लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में
बहम हर मौज से चलने लगी तलवार पानी में
नहाना मत तू ऐ रश्क-ए-परी ज़िन्हार पानी में
हबाब ऐसा न हो शीशा बने इक बार पानी में
सुना ऐ बहर-ए-ख़ूबी तेरी अठखेली से चलने की
उड़ाई रफ़्ता रफ़्ता मौज ने रफ़्तार पानी में
झलक इस तेरे कफ़्श-ए-पुश्त-ए-माही की अगर देखे
करे क़ालिब तही माही भी फिर लाचार पानी में
नहीं लख़्त-ए-जिगर ये चश्म में फिरते कि मर्दुम ने
चराग़ अब कर के रौशन छोड़े हैं दो-चार पानी में
लब-ए-दरिया पे देख आ कर तमाशा आज होली का
भँवर काले के दफ़ बाजे है मौज ऐ यार पानी में
कहूँ क्या साथ ग़ैरों के तो उस बे-दीद ने हमदम
नहाने के लिए हरगिज़ न की तकरार पानी में
कहा मैं ने जो इतना रख क़दम इस दीदा-ए-तर पर
लगा कहने कि आती है मिरी पैज़ार पानी में
'नसीर' आसाँ नहीं ये बात पानी सख़्त मुश्किल है
उठाई रेख़्ते की तू ने क्या दीवार पानी में
ग़ज़ल
लगा जब अक्स-ए-अबरू देखने दिलदार पानी में
शाह नसीर