इश्क़ रुस्वा-कुन-ए-आलम वो है 'अहसन' जिस से
नेक-नामों की भी बद-नामी ओ रुस्वाई है
अहसन मारहरवी
जब मुलाक़ात हुई तुम से तो तकरार हुई
ऐसे मिलने से तो बेहतर है जुदा हो जाना
अहसन मारहरवी
कर के दफ़्न अपने पराए चल दिए
बेकसी का क़ब्र पर मातम रहा
अहसन मारहरवी
किसी को भेज के ख़त हाए ये कैसा अज़ाब आया
कि हर इक पूछता है नामा-बर आया जवाब आया
अहसन मारहरवी
किसी माशूक़ का आशिक़ से ख़फ़ा हो जाना
रूह का जिस्म से गोया है जुदा हो जाना
अहसन मारहरवी
क्यूँ चुप हैं वो बे-बात समझ में नहीं आता
ये रंग-ए-मुलाक़ात समझ में नहीं आता
अहसन मारहरवी
मौत ही आप के बीमार की क़िस्मत में न थी
वर्ना कब ज़हर का मुमकिन था दवा हो जाना
अहसन मारहरवी