इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी
इब्न-ए-आदम की हर अदा बिगड़ी
चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
और बीमार की दशा बिगड़ी
बाज़ आया न अपनी फ़ितरत से
मेरी नासेह से बारहा बिगड़ी
बन गया मरजा-ए-ख़लाइक़-ए-दश्त
शहर की इस क़दर फ़ज़ा बिगड़ी
नाम रक्खा गया सुमूम उस का
लाला-ओ-गुल से जब सबा बिगड़ी
मय-कदे में भी देख कर न कहो
निय्यत-ए-शैख़-ए-पारसा बिगड़ी
तर्क-ए-उल्फ़त के बअ'द तो 'आतिश'
बात पहले से भी सिवा बिगड़ी
ग़ज़ल
इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी
अातिश बहावलपुरी