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इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी | शाही शायरी
ibtida bigDi intiha bigDi

ग़ज़ल

इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी

अातिश बहावलपुरी

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इब्तिदा बिगड़ी इंतिहा बिगड़ी
इब्न-ए-आदम की हर अदा बिगड़ी

चारासाज़ों की चारा-साज़ी से
और बीमार की दशा बिगड़ी

बाज़ आया न अपनी फ़ितरत से
मेरी नासेह से बारहा बिगड़ी

बन गया मरजा-ए-ख़लाइक़-ए-दश्त
शहर की इस क़दर फ़ज़ा बिगड़ी

नाम रक्खा गया सुमूम उस का
लाला-ओ-गुल से जब सबा बिगड़ी

मय-कदे में भी देख कर न कहो
निय्यत-ए-शैख़-ए-पारसा बिगड़ी

तर्क-ए-उल्फ़त के बअ'द तो 'आतिश'
बात पहले से भी सिवा बिगड़ी