हमें भी अर्ज़-ए-तमन्ना का ढब नहीं आता
मिज़ाज-ए-यार भी सादा है क्या किया जाए
अहमद फ़राज़
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हमेशा के लिए मुझ से बिछड़ जा
ये मंज़र बार-हा देखा न जाए
अहमद फ़राज़
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हम-सफ़र चाहिए हुजूम नहीं
इक मुसाफ़िर भी क़ाफ़िला है मुझे
अहमद फ़राज़
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हर तरह की बे-सर-ओ-सामानियों के बावजूद
आज वो आया तो मुझ को अपना घर अच्छा लगा
अहमद फ़राज़
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हवा में नश्शा ही नश्शा फ़ज़ा में रंग ही रंग
ये किस ने पैरहन अपना उछाल रक्खा है
अहमद फ़राज़
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हो दूर इस तरह कि तिरा ग़म जुदा न हो
पास आ तो यूँ कि जैसे कभी तू मिला न हो
अहमद फ़राज़
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हुआ है तुझ से बिछड़ने के बाद ये मालूम
कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी
अहमद फ़राज़
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