जो कुछ निगाह में है हक़ीक़त में वो नहीं
जो तेरे सामने है तमाशा कुछ और है
आफ़ताब हुसैन
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कब भटक जाए 'आफ़्ताब' हुसैन
आदमी का कोई भरोसा नहीं
आफ़ताब हुसैन
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कब तक साथ निभाता आख़िर
वो भी दुनिया में रहता है
आफ़ताब हुसैन
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करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है
दर-अस्ल सिलसिला पस-ए-पर्दा कुछ और है
आफ़ताब हुसैन
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खिला रहेगा किसी याद के जज़ीरे पर
ये बाग़ मैं जिसे वीरान करने वाला हूँ
आफ़ताब हुसैन
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किन मंज़रों में मुझ को महकना था 'आफ़्ताब'
किस रेगज़ार पर हूँ मैं आ कर खिला हुआ
आफ़ताब हुसैन
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किसी तरह तो घटे दिल की बे-क़रारी भी
चलो वो चश्म नहीं कम से कम शराब तो हो
आफ़ताब हुसैन