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करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है | शाही शायरी
karta kuchh aur hai wo dikhata kuchh aur hai

ग़ज़ल

करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है

आफ़ताब हुसैन

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करता कुछ और है वो दिखाता कुछ और है
दर-अस्ल सिलसिला पस-ए-पर्दा कुछ और है

हर-दम तग़य्युरात की ज़द में है काएनात
देखें पलक झपक के तो नक़्शा कुछ और है

जो कुछ निगाह में है हक़ीक़त में वो नहीं
जो तेरे सामने है तमाशा कुछ और है

रख वादी-ए-जुनूँ में क़दम फूँक फूँक कर
ऐ बे-ख़बर सँभल कि ये रिश्ता कुछ और है

तहरीर और कुछ है सर-ए-मतन-ए-ज़िंदगी
और हाशिए में है जो हवाला कुछ और है

हर-चंद दिल धड़कता है पल पल घड़ी घड़ी
लेकिन जो आज दिल को है धड़का कुछ और है

इतनी भी एहतियात न कर जान 'आफ़्ताब'
ख़दशे कुछ और होते हैं होता कुछ और है