मैं सुख़न में हूँ उस जगह कि जहाँ
साँस लेना भी शाइरी है मुझे
तहज़ीब हाफ़ी
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पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे
मैं जंगल में पानी लाया करता था
तहज़ीब हाफ़ी
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सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को
हाथों में फूल हैं मिरे पाँव में रेत है
तहज़ीब हाफ़ी
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तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
समुंदरों से अकेले में बात करनी है
तहज़ीब हाफ़ी
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तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया
इतनी आवाज़ें तुझे दीं कि गला बैठ गया
तहज़ीब हाफ़ी
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वो जिस की छाँव में पच्चीस साल गुज़रे हैं
वो पेड़ मुझ से कोई बात क्यूँ नहीं करता
तहज़ीब हाफ़ी
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ये एक बात समझने में रात हो गई है
मैं उस से जीत गया हूँ कि मात हो गई है
तहज़ीब हाफ़ी
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