दोस्ती इश्क़ और वफ़ादारी
सख़्त जाँ में भी नर्म गोशे हैं
शीन काफ़ निज़ाम
आँखें कहीं दिमाग़ कहीं दस्त ओ पा कहीं
रस्तों की भीड़-भाड़ में दुनिया बिखर गई
शीन काफ़ निज़ाम
दरवाज़ा कोई घर से निकलने के लिए दे
बे-ख़ौफ़ कोई रास्ता चलने के लिए दे
शीन काफ़ निज़ाम
चुभन ये पीठ में कैसी है मुड़ के देख तो ले
कहीं कोई तुझे पीछे से देखता होगा
शीन काफ़ निज़ाम
बीच का बढ़ता हुआ हर फ़ासला ले जाएगा
एक तूफ़ाँ आएगा सब कुछ बहा ले जाएगा
शीन काफ़ निज़ाम
बरसों से घूमता है इसी तरह रात दिन
लेकिन ज़मीन मिलती नहीं आसमान को
शीन काफ़ निज़ाम
बदलती रुत का नौहा सुन रहा है
नदी सोई है जंगल जागता है
शीन काफ़ निज़ाम
अपनी पहचान भीड़ में खो कर
ख़ुद को कमरों में ढूँडते हैं लोग
शीन काफ़ निज़ाम
अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी
उस ने किरदार बदल कर मिरा क़िस्सा लिख्खा
शीन काफ़ निज़ाम