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शीन काफ़ निज़ाम शायरी | शाही शायरी

शीन काफ़ निज़ाम शेर

31 शेर

बदलती रुत का नौहा सुन रहा है
नदी सोई है जंगल जागता है

शीन काफ़ निज़ाम




अपनी पहचान भीड़ में खो कर
ख़ुद को कमरों में ढूँडते हैं लोग

शीन काफ़ निज़ाम




अपने अफ़्साने की शोहरत उसे मंज़ूर न थी
उस ने किरदार बदल कर मिरा क़िस्सा लिख्खा

शीन काफ़ निज़ाम




आरज़ू थी एक दिन तुझ से मिलूँ
मिल गया तो सोचता हूँ क्या करूँ

शीन काफ़ निज़ाम