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सलीम कौसर शायरी | शाही शायरी

सलीम कौसर शेर

48 शेर

अहल-ए-ख़िरद को आज भी अपने यक़ीन के लिए
जिस की मिसाल ही नहीं उस की मिसाल चाहिए

सलीम कौसर




ऐ मिरे चारागर तिरे बस में नहीं मोआमला
सूरत-ए-हाल के लिए वाक़िफ़-ए-हाल चाहिए

सलीम कौसर




अजनबी हैरान मत होना कि दर खुलता नहीं
जो यहाँ आबाद हैं उन पर भी घर खुलता नहीं

सलीम कौसर




और इस से पहले कि साबित हो जुर्म-ए-ख़ामोशी
हम अपनी राय का इज़हार करना चाहते हैं

सलीम कौसर




बहुत दिनों में कहीं हिज्र-ए-माह-ओ-साल के बाद
रुका हुआ है ज़माना तिरे विसाल के बाद

सलीम कौसर




भला वो हुस्न किस की दस्तरस में आ सका है
कि सारी उम्र भी लिक्खें मक़ाला कम रहेगा

सलीम कौसर




दस्त-ए-दुआ को कासा-ए-साइल समझते हो
तुम दोस्त हो तो क्यूँ नहीं मुश्किल समझते हो

सलीम कौसर




देखते कुछ हैं दिखाते हमें कुछ हैं कि यहाँ
कोई रिश्ता ही नहीं ख़्वाब का ताबीर के साथ

सलीम कौसर




दुनिया अच्छी भी नहीं लगती हम ऐसों को 'सलीम'
और दुनिया से किनारा भी नहीं हो सकता

सलीम कौसर