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सलीम कौसर शायरी | शाही शायरी

सलीम कौसर शेर

48 शेर

वक़्त रुक रुक के जिन्हें देखता रहता है 'सलीम'
ये कभी वक़्त की रफ़्तार हुआ करते थे

सलीम कौसर




वो जिन के नक़्श-ए-क़दम देखने में आते हैं
अब ऐसे लोग तो कम देखने में आते हैं

सलीम कौसर




याद का ज़ख़्म भी हम तुझ को नहीं दे सकते
देख किस आलम-ए-ग़ुर्बत में मिले हैं तुझ से

सलीम कौसर




ये आग लगने से पहले की बाज़-गश्त है जो
बुझाने वालों को अब तक धुआँ बुलाता है

सलीम कौसर




ये लोग इश्क़ में सच्चे नहीं हैं वर्ना हिज्र
न इब्तिदा न कहीं इंतिहा में आता है

सलीम कौसर




ज़ोरों पे 'सलीम' अब के है नफ़रत का बहाव
जो बच के निकल आएगा तैराक वही है

सलीम कौसर




एक तरफ़ तिरे हुस्न की हैरत एक तरफ़ दुनिया
और दुनिया में देर तलक ठहरा नहीं जा सकता

सलीम कौसर




अब जो लहर है पल भर बाद नहीं होगी यानी
इक दरिया में दूसरी बार उतरा नहीं जा सकता

सलीम कौसर




अभी हैरत ज़ियादा और उजाला कम रहेगा
ग़ज़ल में अब के भी तेरा हवाला कम रहेगा

सलीम कौसर