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वुसअत है वही तंगी-अफ़्लाक वही है | शाही शायरी
wusat hai wahi tangi-e-aflak wahi hai

ग़ज़ल

वुसअत है वही तंगी-अफ़्लाक वही है

सलीम कौसर

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वुसअत है वही तंगी-अफ़्लाक वही है
जो ख़ाक पे ज़ाहिर है पस-ए-ख़ाक वही है

इक उम्र हुई मौसम-ए-ज़िंदाँ नहीं बदला
रौज़न है वही दीदा-ए-नमनाक वही है

क्या चश्म-ए-रफ़ू-गर से शिकायत हो कि अब तक
वहशत है वही सीना-ए-सद-चाक वही है

हर चंद कि हालात मुआफ़िक़ नहीं फिर भी
दिल तेरी तरफ़-दारी में सफ़्फ़ाक वही है

इक हाथ की जुम्बिश में दर-ओ-बस्त है वर्ना
गर्दिश वही कूज़ा है वही चाक वही है

जो कुछ है मिरे पास वो मेरा नहीं शायद
जो मैं ने गँवा दी मिरी इम्लाक वही है

ज़ोरों पे 'सलीम' अब के है नफ़रत का बहाव
जो बच के निकल आएगा तैराक वही है