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साबिर ज़फ़र शायरी | शाही शायरी

साबिर ज़फ़र शेर

47 शेर

मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
जिस से जो व'अदा किया पूरा किया

साबिर ज़फ़र




मैं सोचता हूँ मुझे इंतिज़ार किस का है
किवाड़ रात को घर का अगर खुला रह जाए

साबिर ज़फ़र