मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
जिस से जो व'अदा किया पूरा किया
अपनी यादें उस से वापस माँग कर
मैं ने अपने-आप को यकजा किया
काश उस पर चल भी सकता मैं कभी
उम्र भर हमवार जो रस्ता किया
सुल्ह का पैमाँ किया हर शख़्स से
और अपने-आप से झगड़ा किया
इश्क़ में इक शख़्स क्या बिछड़ा 'ज़फ़र'
मैं ने हर परछाईं का पीछा किया
ग़ज़ल
मैं ने घाटे का भी इक सौदा किया
साबिर ज़फ़र