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उबैदुल्लाह अलीम शायरी | शाही शायरी

उबैदुल्लाह अलीम शेर

47 शेर

दोस्तो जश्न मनाओ कि बहार आई है
फूल गिरते हैं हर इक शाख़ से आँसू की तरह

उबैदुल्लाह अलीम




दरूद पढ़ते हुए उस की दीद को निकलें
तो सुब्ह फूल बिछाए सबा हमारे लिए

उबैदुल्लाह अलीम




बोले नहीं वो हर्फ़ जो ईमान में न थे
लिक्खी नहीं वो बात जो अपनी नहीं थी बात

उबैदुल्लाह अलीम




बड़ी आरज़ू थी हम को नए ख़्वाब देखने की
सो अब अपनी ज़िंदगी में नए ख़्वाब भर रहे हैं

उबैदुल्लाह अलीम




अज़ीज़ इतना ही रक्खो कि जी सँभल जाए
अब इस क़दर भी न चाहो कि दम निकल जाए

उबैदुल्लाह अलीम




ऐ मेरे ख़्वाब आ मिरी आँखों को रंग दे
ऐ मेरी रौशनी तू मुझे रास्ता दिखा

उबैदुल्लाह अलीम




अहल-ए-दिल के दरमियाँ थे 'मीर' तुम
अब सुख़न है शोबदा-कारों के बीच

उबैदुल्लाह अलीम




अगर हों कच्चे घरोंदों में आदमी आबाद
तो एक अब्र भी सैलाब के बराबर है

उबैदुल्लाह अलीम




अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते

उबैदुल्लाह अलीम