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उबैदुल्लाह अलीम शायरी | शाही शायरी

उबैदुल्लाह अलीम शेर

47 शेर

तुम अपने रंग नहाओ मैं अपनी मौज उड़ूँ
वो बात भूल भी जाओ जो आनी-जानी हुई

उबैदुल्लाह अलीम




तुम हम-सफ़र हुए तो हुई ज़िंदगी अज़ीज़
मुझ में तो ज़िंदगी का कोई हौसला न था

उबैदुल्लाह अलीम




तू बू-ए-गुल है और परेशाँ हुआ हूँ मैं
दोनों में एक रिश्ता-ए-आवारगी तो है

उबैदुल्लाह अलीम




ये कैसी बिछड़ने की सज़ा है
आईने में चेहरा रख गया है

उबैदुल्लाह अलीम




ज़मीं के लोग तो क्या दो दिलों की चाहत में
ख़ुदा भी हो तो उसे दरमियान लाओ मत

उबैदुल्लाह अलीम




ज़मीन जब भी हुई कर्बला हमारे लिए
तो आसमान से उतरा ख़ुदा हमारे लिए

उबैदुल्लाह अलीम




एक चेहरे में तो मुमकिन नहीं इतने चेहरे
किस से करते जो कोई इश्क़ दोबारा करते

उबैदुल्लाह अलीम




आओ तुम ही करो मसीहाई
अब बहलती नहीं है तन्हाई

उबैदुल्लाह अलीम




अब तो मिल जाओ हमें तुम कि तुम्हारी ख़ातिर
इतनी दूर आ गए दुनिया से किनारा करते

उबैदुल्लाह अलीम