वीरान सराए का दिया है
जो कौन-ओ-मकाँ में जल रहा है
ये कैसी बिछड़ने की सज़ा है
आईने में चेहरा रख गया है
ख़ुर्शीद मिसाल शख़्स कल शाम
मिट्टी के सुपुर्द कर दिया है
तुम मर गए हौसला तुम्हारा
ज़िंदा हूँ मैं ये मेरा हौसला है
अंदर भी इस ज़मीं के रौशनी हो
मिट्टी में चराग़ रख दिया है
मैं कौन सा ख़्वाब देखता हूँ
ये कौन से मुल्क की फ़ज़ा है
वो कौन सा हाथ है कि जिस ने
मुझ आग को ख़ाक से लिखा है
रक्खा था ख़ला में पाँव मैं ने
रस्ते में सितारा आ गया है
शायद कि ख़ुदा में और मुझ में
इक जस्त का और फ़ासला है
गर्दिश में हैं कितनी काएनातें
बच्चा मिरा पाँव चल रहा है
ग़ज़ल
वीरान सराए का दिया है
उबैदुल्लाह अलीम