आओ तुम ही करो मसीहाई
अब बहलती नहीं है तन्हाई
तुम गए थे तो साथ ले जाते
अब ये किस काम की है बीनाई
हम कि थे लज़्ज़त-ए-हयात में गुम
जाँ से इक मौज-ए-तिश्नगी आई
हम-सफ़र ख़ुश न हो मोहब्बत से
जाने हम किस के हों तमन्नाई
कोई दीवाना कहता जाता था
ज़िंदगी ये नहीं मिरे भाई
अव्वल-ए-इश्क़ में ख़बर भी न थी
इज़्ज़तें बख़्शती है रुस्वाई
कैसे पाओ मुझे जो तुम देखो
सतह-ए-साहिल से मेरी गहराई
जिन में हम खेल कर जवान हुए
वही गलियाँ हुईं तमाशाई
ग़ज़ल
आओ तुम ही करो मसीहाई
उबैदुल्लाह अलीम