एक करवट पे रात क्या कटती
हम ने ईजाद की नई दुनिया
नोमान शौक़
एक दिन दोनों ने अपनी हार मानी एक साथ
एक दिन जिस से झगड़ते थे उसी के हो गए
नोमान शौक़
दूर जितना भी चला जाए मगर
चाँद तुझ सा तो नहीं हो सकता
नोमान शौक़
दिन को रुख़्सत किया बहाने से
रात थी वो मिरे सितारे की
नोमान शौक़
दिल दे न दे मगर ये तिरा हुस्न-ए-बे-मिसाल
वापस न कर फ़क़ीर को आख़िर बदन तो है
नोमान शौक़
डर डर के जागते हुए काटी तमाम रात
गलियों में तेरे नाम की इतनी सदा लगी
नोमान शौक़
चख लिया उस ने प्यार थोड़ा सा
और फिर ज़हर कर दिया है मुझे
नोमान शौक़
चाहता हूँ मैं तशद्दुद छोड़ना
ख़त ही लिखते हैं जवाबी लोग सब
नोमान शौक़
चाहता हूँ कि पुकारे तुम्हें दिन रात जहाँ
हर तरफ़ मेरी ही आवाज़ सुनाई दे मुझे
नोमान शौक़