EN اردو
नज़ीर अकबराबादी शायरी | शाही शायरी

नज़ीर अकबराबादी शेर

104 शेर

जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
हक़ तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है

नज़ीर अकबराबादी




जो ख़ुशामद करे ख़ल्क़ उस से सदा राज़ी है
सच तो ये है कि ख़ुशामद से ख़ुदा राज़ी है

नज़ीर अकबराबादी




जुदा किसी से किसी का ग़रज़ हबीब न हो
ये दाग़ वो है कि दुश्मन को भी नसीब न हो

from their beloved separated none should be
such a fate should not befall even my enemy

नज़ीर अकबराबादी




कहीं बैठने दे दिल अब मुझे जो हवास टुक मैं बजा करूँ
नहीं ताब मुझ में कि जब तलक तू फिरे तो मैं भी फिरा करूँ

नज़ीर अकबराबादी




कल बोसा-ए-पा हम ने लिया था सो न आया
शायद कि वो बोसा ही हुआ आबला-ए-पा

नज़ीर अकबराबादी




कल 'नज़ीर' उस ने जो पूछा ब-ज़बान-ए-पंजाब
नेह विच मेंडी ए की हाल-ए-तुसादा वे मियाँ

नज़ीर अकबराबादी




कल शब-ए-वस्ल में क्या जल्द बजी थीं घड़ियाँ
आज क्या मर गए घड़ियाल बजाने वाले

नज़ीर अकबराबादी




कमाल-ए-इश्क़ भी ख़ाली नहीं तमन्ना से
जो है इक आह तो उस को भी है असर की तलब

नज़ीर अकबराबादी




ख़फ़ा देखा है उस को ख़्वाब में दिल सख़्त मुज़्तर है
खिला दे देखिए क्या क्या गुल-ए-ताबीर-ए-ख़्वाब अपना

नज़ीर अकबराबादी