क्या कहूँ किस तरह से जीता हूँ
ग़म को खाता हूँ आँसू पीता हूँ
मीर असर
आसूदगी कहाँ जो दिल-ए-ज़ार साथ है
मरने के बा'द भी यही आज़ार साथ है
मीर असर
किन ने कहा और से न मिल तू
पर हम से भी कभू मिला कर
मीर असर
काम तुझ से अभी तो साक़ी है
कि ज़रा हम को होश बाक़ी है
मीर असर
जिस घड़ी घूरते हो ग़ुस्सा से
निकले पड़ता है प्यार आँखों में
मीर असर
जन्नत है उस बग़ैर जहन्नम से भी ज़ुबूँ
दोज़ख़ बहिश्त हैगी अगर यार साथ है
मीर असर
दर्द-ए-दिल छोड़ जाइए सो कहाँ
अपनी बाहर तो यहाँ गुज़र ही नहीं
मीर असर
बेवफ़ा कुछ नहीं तेरी तक़्सीर
मुझ को मेरी वफ़ा ही रास नहीं
मीर असर
अपने नज़दीक दर्द-ए-दिल मैं कहा
तेरे नज़दीक क़िस्सा-ख़्वानी की
मीर असर