सर्फ़-ए-ग़म हम ने नौजवानी की
वाह क्या ख़ूब ज़िंदगानी की
अपनी बीती अगर मैं तुझ से कहूँ
बात निबड़े न इस कहानी की
तेरे दाग़ों की ऐ ग़म-ए-उल्फ़त
ख़ूब हम ने भी बाग़बानी की
जूँ निगह दिल गया है आँखों की राह
गरचे हम ने निगाहबानी की
किस के हाँ तुम करम नहीं करते
कभू ईधर न मेहरबानी की
अपने नज़दीक दर्द-ए-दिल मैं कहा
तेरे नज़दीक क़िस्सा-ख़्वानी की
हर्ज़ा-गोई से मुझ को दी है नजात
हैगी मिन्नत ये बे-ज़बानी की
नहीं ताक़त कि दम निकाल सकूँ
अब ये नौबत है ना-तवानी की
'असर' इस हाल पे भी जीता है
क्या कहूँ उस की सख़्त-जानी की
ग़ज़ल
सर्फ़-ए-ग़म हम ने नौजवानी की
मीर असर