आसूदगी कहाँ जो दिल-ए-ज़ार साथ है
मरने के ब'अद भी यही आज़ार साथ है
अंजाम हो ब-ख़ैर इलाही बुरे हैं ढंग
हर रोज़गार ऐसे जफ़ाकार साथ है
गर सर्फ़-ए-दिल में चश्मा-ए-ख़ूँ हो तो ख़ुश्क हो
तूफ़ाँ ये है कि दीदा-ए-ख़ूँ-बार साथ है
देखें भला टुक इक तो जफ़ा कीजे और से
क्या शैख़ी सारी इस ही गुनहगार साथ है
ऐ शाना ज़ुल्फ़-ए-यार से पेचिश न कीजियो
वाबस्ता मेरी जान हर इक तार साथ है
जन्नत है उस बग़ैर जहन्नम से भी ज़ुबूँ
दोज़ख़ बहिश्त हैगी अगर यार साथ है
मुश्किल है ताकि हस्ती है जावे ख़ुदी का शिर्क
तार-ए-नफ़स नहीं है ये ज़ुन्नार साथ है
होती है बात बात में वो चश्म ख़शमगीं
सोहबत 'असर' हमें सदा बीमार साथ है
ग़ज़ल
आसूदगी कहाँ जो दिल-ए-ज़ार साथ है
मीर असर