मुमकिन नहीं है शायद दोनों का साथ रहना
तेरी ख़बर जब आई अपनी ख़बर गई है
मीर अहमद नवेद
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पेश-ए-ज़मीं रहूँ कि पस-ए-आसमाँ रहूँ
रहता हूँ अपने साथ मैं चाहे जहाँ रहूँ
मीर अहमद नवेद
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रात उस बज़्म में तस्वीर के मानिंद थे हम
हम से पूछे तो कोई शम्अ का जलना क्या था
मीर अहमद नवेद
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ज़ख़्म-ए-तलाश में है निहाँ मरहम-ए-दलील
तू अपना दिल न हार मोहब्बत बहाल रख
मीर अहमद नवेद
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