EN اردو
ये उम्र-ए-सद-बला जो अपने ही सर गई है | शाही शायरी
ye umr-e-sad-bala jo apne hi sar gai hai

ग़ज़ल

ये उम्र-ए-सद-बला जो अपने ही सर गई है

मीर अहमद नवेद

;

ये उम्र-ए-सद-बला जो अपने ही सर गई है
थोड़ी गुज़ार लेंगे थोड़ा गुज़र गई है

या मूँद लीं हैं आँखें या मुँद गईं हैं आँखें
तुझ पर पस-ए-तमाशा क्या क्या गुज़र गई है

मुमकिन नहीं है शायद दोनों का साथ रहना
तेरी ख़बर जब आई अपनी ख़बर गई है

शोर-ए-ख़िज़ाँ है घर में दीवार-ओ-बाम-ओ-दर में
दर पर सवारी कल आ कर ठहर गई है

मालूम ही नहीं है कुछ फ़र्क़ ही नहीं है
ये दिन गुज़र गया है या शब गुज़र गई है

हर गुल-बदन को तकना आँखों से चूम रखना
दीवानगी हमारी हद से गुज़र गई है