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सादा है गरचे लौह-ए-बसारत बहाल रख | शाही शायरी
sada hai garche lauh-e-basarat bahaal rakh

ग़ज़ल

सादा है गरचे लौह-ए-बसारत बहाल रख

मीर अहमद नवेद

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सादा है गरचे लौह-ए-बसारत बहाल रख
शोर-ए-क़लम बहुत है समाअत बहाल रख

ज़ख़्म-ए-तलाश में है निहाँ मरहम-ए-दलील
तू अपना दिल न हार मोहब्बत बहाल रख

नज़्ज़ारा बे-नज़ारा हुआ है तो क्या हुआ
हैरत की ताब दीद की हसरत बहाल रख

बस में तो ख़ैर कुछ भी नहीं है तिरे मगर
बचना है यासियत से तो वहशत बहाल रख

मस्ती ओ होश ओ जज़्ब ओ जलाल ओ जुनून ओ इश्क़
ऐ मेरे यार कोई तो शिद्दत बहाल रख