बड़े सलीक़े से दुनिया ने मेरे दिल को दिए
वो घाव जिन में था सच्चाइयों का चरका भी
मजीद अमजद
मैं एक पल के रंज-ए-फ़रावाँ में खो गया
मुरझा गए ज़माने मिरे इंतिज़ार में
मजीद अमजद
क्या रूप दोस्ती का क्या रंग दुश्मनी का
कोई नहीं जहाँ में कोई नहीं किसी का
मजीद अमजद
जब अंजुमन तवज्जोह-ए-सद-गुफ़्तुगू में हो
मेरी तरफ़ भी इक निगह-ए-कम-सुख़न पड़े
मजीद अमजद
इस जलती धूप में ये घने साया-दार पेड़
मैं अपनी ज़िंदगी उन्हें दे दूँ जो बन पड़े
मजीद अमजद
हर वक़्त फ़िक्र-ए-मर्ग-ए-ग़रीबाना चाहिए
सेह्हत का एक पहलू मरीज़ाना चाहिए
मजीद अमजद
हाए वो ज़िंदगी फ़रेब आँखें
तू ने क्या सोचा मैं ने क्या समझा
मजीद अमजद
चाँदनी में साया-हा-ए-काख़-ओ-कू में घूमिए
फिर किसी को चाहने की आरज़ू में घूमिए
मजीद अमजद