ख़िरद ढूँढती रह गई वजह-ए-ग़म
मज़ा ग़म का दर्द आश्ना ले गया
कालीदास गुप्ता रज़ा
लब-ए-ख़िरद से यही बार बार निकलेगा
निकालने ही से दिल का ग़ुबार निकलेगा
कालीदास गुप्ता रज़ा
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सामना आज अना से होगा
बात रखनी है तो सर दे देना
कालीदास गुप्ता रज़ा
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सुराग़-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत का ढूँडियो न कहीं
कि उन की राख हवा में बिखेर आया मैं
कालीदास गुप्ता रज़ा
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ज़माना हुस्न नज़ाकत बला जफ़ा शोख़ी
सिमट के आ गए सब आप की अदाओं में
कालीदास गुप्ता रज़ा