EN اردو
कालीदास गुप्ता रज़ा शायरी | शाही शायरी

कालीदास गुप्ता रज़ा शेर

14 शेर

ख़िरद ढूँढती रह गई वजह-ए-ग़म
मज़ा ग़म का दर्द आश्ना ले गया

कालीदास गुप्ता रज़ा




लब-ए-ख़िरद से यही बार बार निकलेगा
निकालने ही से दिल का ग़ुबार निकलेगा

कालीदास गुप्ता रज़ा




सामना आज अना से होगा
बात रखनी है तो सर दे देना

कालीदास गुप्ता रज़ा




सुराग़-ए-मेहर-ओ-मोहब्बत का ढूँडियो न कहीं
कि उन की राख हवा में बिखेर आया मैं

कालीदास गुप्ता रज़ा




ज़माना हुस्न नज़ाकत बला जफ़ा शोख़ी
सिमट के आ गए सब आप की अदाओं में

कालीदास गुप्ता रज़ा