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जिधर ख़ुद गया था लगा ले गया | शाही शायरी
jidhar KHud gaya tha laga le gaya

ग़ज़ल

जिधर ख़ुद गया था लगा ले गया

कालीदास गुप्ता रज़ा

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जिधर ख़ुद गया था लगा ले गया
न जाने किधर रास्ता ले गया

पड़ा था कि बे-कार की चीज़ था
मुझे राह से कौन उठा ले गया

कोई दे के मुझ को शुऊर-ए-हयात
मिरा दूर सब्र-आज़मा ले गया

गदा ले गया कब मिरे दर से भीक
सदा मेरे लब की चुरा ले गया

न पामाल होने दिया सब्र ने
गिरे आँसुओं को उठा ले गया

ख़िरद ढूँढती रह गई वजह-ए-ग़म
मज़ा ग़म का दर्द आश्ना ले गया