जिधर ख़ुद गया था लगा ले गया
न जाने किधर रास्ता ले गया
पड़ा था कि बे-कार की चीज़ था
मुझे राह से कौन उठा ले गया
कोई दे के मुझ को शुऊर-ए-हयात
मिरा दूर सब्र-आज़मा ले गया
गदा ले गया कब मिरे दर से भीक
सदा मेरे लब की चुरा ले गया
न पामाल होने दिया सब्र ने
गिरे आँसुओं को उठा ले गया
ख़िरद ढूँढती रह गई वजह-ए-ग़म
मज़ा ग़म का दर्द आश्ना ले गया
ग़ज़ल
जिधर ख़ुद गया था लगा ले गया
कालीदास गुप्ता रज़ा