हक़ीक़तों का जलाल देंगे सदाक़तों का जमाल देंगे
तुझे भी हम ऐ ग़म-ए-ज़माना ग़ज़ल के साँचे में ढाल देंगे
कलीम आजिज़
इधर आ हम दिखाते हैं ग़ज़ल का आइना तुझ को
ये किस ने कह दिया गेसू तिरे बरहम नहीं प्यारे
कलीम आजिज़
इक घर भी सलामत नहीं अब शहर-ए-वफ़ा में
तू आग लगाने को किधर जाए है प्यारे
कलीम आजिज़
इश्क़ में मौत का नाम है ज़िंदगी
जिस को जीना हो मरना गवारा करे
कलीम आजिज़
कभी ऐसा भी होवे है रोते रोते
जिगर थाम कर मुस्कुराना पड़े है
कलीम आजिज़
कल कहते रहे हैं वही कल कहते रहेंगे
हर दौर में हम उन पे ग़ज़ल कहते रहेंगे
कलीम आजिज़
करे है अदावत भी वो इस अदा से
लगे है कि जैसे मोहब्बत करे है
कलीम आजिज़
ख़मोशी में हर बात बन जाए है
जो बोले है दीवाना कहलाए है
कलीम आजिज़
कुछ रोज़ से हम शहर में रुस्वा न हुए हैं
आ फिर कोई इल्ज़ाम लगाने के लिए आ
कलीम आजिज़