क्या सितम है कि वो ज़ालिम भी है महबूब भी है
याद करते न बने और भुलाए न बने
कलीम आजिज़
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मय में कोई ख़ामी है न साग़र में कोई खोट
पीना नहीं आए है तो छलकाए चलो हो
कलीम आजिज़
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मैं मोहब्बत न छुपाऊँ तू अदावत न छुपा
न यही राज़ में अब है न वही राज़ में है
कलीम आजिज़