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कफ़ील आज़र अमरोहवी शायरी | शाही शायरी

कफ़ील आज़र अमरोहवी शेर

19 शेर

मकाँ शीशे का बनवाते हो 'आज़र'
बहुत आएँगे पत्थर देख लेना

कफ़ील आज़र अमरोहवी




एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिन
अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है

कफ़ील आज़र अमरोहवी




कोई मंज़िल नहीं मिलती तो ठहर जाते हैं
अश्क आँखों में मुसाफ़िर की तरह आते हैं

कफ़ील आज़र अमरोहवी




कमरे में फैलता रहा सिगरेट का धुआँ
मैं बंद खिड़कियों की तरफ़ देखता रहा

कफ़ील आज़र अमरोहवी




कब आओगे ये घर ने मुझ से चलते वक़्त पूछा था
यही आवाज़ अब तक गूँजती है मेरे कानों में

कफ़ील आज़र अमरोहवी




जब से इक ख़्वाब की ताबीर मिली है मुझ को
मैं हर इक ख़्वाब की ताबीर से घबराता हूँ

कफ़ील आज़र अमरोहवी




जाते जाते ये निशानी दे गया
वो मिरी आँखों में पानी दे गया

कफ़ील आज़र अमरोहवी




इक सहमा हुआ सुनसान गली का नुक्कड़
शहर की भीड़ में अक्सर मुझे याद आया है

कफ़ील आज़र अमरोहवी




हम भी इन बच्चों की मानिंद कोई पल जी लें
एक सिक्का जो हथेली पे सजा लाते हैं

कफ़ील आज़र अमरोहवी