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जाते जाते ये निशानी दे गया | शाही शायरी
jate jate ye nishani de gaya

ग़ज़ल

जाते जाते ये निशानी दे गया

कफ़ील आज़र अमरोहवी

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जाते जाते ये निशानी दे गया
वो मिरी आँखों में पानी दे गया

जागते लम्हों की चादर ओढ़ कर
कोई ख़्वाबों को जवानी दे गया

मेरे हाथों से खिलौने छीन कर
मुझ को ज़ख़्मों की कहानी दे गया

हल न था मुश्किल का कोई उस के पास
सिर्फ़ वा'दे आसमानी दे गया

ख़ुद से शर्मिंदा मुझे होना पड़ा
आइना जब मेरा सानी दे गया

मुझ को 'आज़र' इक फ़रेब-ए-आरज़ू
ख़ूबसूरत ज़िंदगानी दे गया