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तन्हाई की गली में हवाओं का शोर था | शाही शायरी
tanhai ki gali mein hawaon ka shor tha

ग़ज़ल

तन्हाई की गली में हवाओं का शोर था

कफ़ील आज़र अमरोहवी

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तन्हाई की गली में हवाओं का शोर था
आँखों में सो रहा था अँधेरा थका हुआ

सीने में जैसे तीर सा पैवस्त हो गया
था कितना दिल-ख़राश उदासी का क़हक़हा

यूँ भी हुआ कि शहर की सड़कों पे बार-हा
हर शख़्स से मैं अपना पता पूछता फिरा

बरसों से चल रहा है कोई मेरे साथ साथ
है कौन शख़्स उस से मैं इक बार पूछता

दिल में उतर के बुझ गई यादों की चाँदनी
आँखों में इंतिज़ार का सूरज पिघल गया

छोड़ी है उन की चाह तो अब लग रहा है यूँ
जैसे मैं इतने रोज़ अँधेरों में क़ैद था

मैं ने ज़रा सी बात कही थी मज़ाक़ में
तुम ने ज़रा सी बात को इतना बढ़ा लिया

कमरे में फैलता रहा सिगरेट का धुआँ
मैं बंद खिड़कियों की तरफ़ देखता रहा

'आज़र' ये किस की सम्त बढ़े जा रहे हैं लोग
इस शहर में तो मेरे सिवा कोई भी न था