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जोश मलीहाबादी शायरी | शाही शायरी

जोश मलीहाबादी शेर

43 शेर

उस ने वा'दा किया है आने का
रंग देखो ग़रीब ख़ाने का

जोश मलीहाबादी




वहाँ से है मिरी हिम्मत की इब्तिदा वल्लाह
जो इंतिहा है तिरे सब्र आज़माने की

जोश मलीहाबादी




वो करें भी तो किन अल्फ़ाज़ में तेरा शिकवा
जिन को तेरी निगह-ए-लुत्फ़ ने बर्बाद किया

जोश मलीहाबादी




ज़रा आहिस्ता ले चल कारवान-ए-कैफ़-ओ-मस्ती को
कि सत्ह-ए-ज़ेहन-ए-आलम सख़्त ना-हमवार है साक़ी

जोश मलीहाबादी




गुज़र रहा है इधर से तो मुस्कुराता जा
चराग़-ए-मज्लिस-ए-रुहानियाँ जलाता जा

जोश मलीहाबादी




आड़े आया न कोई मुश्किल में
मशवरे दे के हट गए अहबाब

जोश मलीहाबादी




आप से हम को रंज ही कैसा
मुस्कुरा दीजिए सफ़ाई से

जोश मलीहाबादी




अब ऐ ख़ुदा इनायत-ए-बेजा से फ़ाएदा
मानूस हो चुके हैं ग़म-ए-जावेदाँ से हम

जोश मलीहाबादी




अब दिल का सफ़ीना क्या उभरे तूफ़ाँ की हवाएँ साकिन हैं
अब बहर से कश्ती क्या खेले मौजों में कोई गिर्दाब नहीं

जोश मलीहाबादी