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इंशा अल्लाह ख़ान शायरी | शाही शायरी

इंशा अल्लाह ख़ान शेर

33 शेर

हर तरफ़ हैं तिरे दीदार के भूके लाखों
पेट भर कर कोई ऐसा भी तरहदार न हो

इंशा अल्लाह ख़ान




अजीब लुत्फ़ कुछ आपस के छेड़-छाड़ में है
कहाँ मिलाप में वो बात जो बिगाड़ में है

इंशा अल्लाह ख़ान




है ख़ाल यूँ तुम्हारे चाह-ए-ज़क़न के अंदर
जिस रूप हो कनहय्या आब-ए-जमन के अंदर

इंशा अल्लाह ख़ान




ग़ुंचा-ए-गुल के सबा गोद भरी जाती है
एक परी आती है और एक परी जाती है

इंशा अल्लाह ख़ान




गर्मी ने कुछ आग और भी सीने में लगाई
हर तौर ग़रज़ आप से मिलना ही कम अच्छा

इंशा अल्लाह ख़ान




दे एक शब को अपनी मुझे ज़र्द शाल तू
है मुझ को सूँघने के हवस सो निकाल तू

इंशा अल्लाह ख़ान




दहकी है आग दिल में पड़े इश्तियाक़ की
तेरे सिवाए किस से हो इस का इलाज आज

इंशा अल्लाह ख़ान




छेड़ने का तो मज़ा जब है कहो और सुनो
बात में तुम तो ख़फ़ा हो गए लो और सुनो

इंशा अल्लाह ख़ान




चंद मुद्दत को फिराक़-ए-सनम-ओ-दैर तो है
आओ काबा कभी देख आएँ न इक सैर तो है

इंशा अल्लाह ख़ान