छेड़ने का तो मज़ा जब है कहो और सुनो
बात में तुम तो ख़फ़ा हो गए लो और सुनो
तुम कहोगे जिसे कुछ क्यूँ न कहेगा तुम को
छोड़ देगा वो भला देखिए तो और सुनो
ये भी इंसाफ़ है कुछ सोचो तो अपने दिल में
तुम तो सौ कह लो मिरी कुछ न सुनो और सुनो
अब तो कुछ इतने ख़फ़ा हो कि कहो हो मुझ से
है क़सम तुम को मिरा नाम न लो और सुनो
अर्ज़-ए-अहवाल मिरा सुन के झिड़क कर बोले
जाव, रे वाव ज़बर रौ हो, चलो और सुनो
चल के दो एक क़दम देखते फिर हो यूँ को
गालियाँ सुन तो चुके चाहते हो और सुनो
आप ही आप मुझे छेड़ो रुको फिर आफी
आप ही बात में फिर रूठ रहो और सुनो
आफ़रीं ईं न यही चाहिए शाबाश तुम्हें
देख रोता मुझे यूँ हँसने लगो और सुनो
बात मेरी जो नहीं सुनते अकेले मिल के
ऐसे है ढब से सुनाऊँ कि सुनो और सुनो
शिकवा-मंद आप से 'इंशा' हो सो उस का क्या दख़्ल
तुम न मानो तो कहीं चुपके छुपो और सुनो
ग़ज़ल
छेड़ने का तो मज़ा जब है कहो और सुनो
इंशा अल्लाह ख़ान