EN اردو
इंशा अल्लाह ख़ान शायरी | शाही शायरी

इंशा अल्लाह ख़ान शेर

33 शेर

काटे हैं हम ने यूँही अय्याम ज़िंदगी के
सीधे से सीधे-सादे और कज से कज रहे हैं

इंशा अल्लाह ख़ान




जिस ने यारो मुझ से दावा शेर के फ़न का किया
मैं ने ले कर उस के काग़ज़ और क़लम आगे धरा

इंशा अल्लाह ख़ान




जज़्बा-ए-इश्क़ सलामत है तो इंशा-अल्लाह
कच्चे धागे से चले आएँगे सरकार बंधे

इंशा अल्लाह ख़ान




जावे वो सनम ब्रिज को तो आप कन्हैया
झट सामने हो मुरली की धुन नज़्र पकड़ कर

इंशा अल्लाह ख़ान




हज़ार शैख़ ने दाढ़ी बढ़ाई सन की सी
मगर वो बात कहाँ मौलवी मदन की सी

इंशा अल्लाह ख़ान




हर तरफ़ हैं तिरे दीदार के भूके लाखों
पेट भर कर कोई ऐसा भी तरहदार न हो

इंशा अल्लाह ख़ान




है नूर-ए-बसर मर्दुमक-ए-दीदा में पिन्हाँ यूँ जैसे कन्हैया
सो अश्क के क़तरों से पड़ा खेले है झुरमुट और आँखों में पनघट

इंशा अल्लाह ख़ान




है ख़ाल यूँ तुम्हारे चाह-ए-ज़क़न के अंदर
जिस रूप हो कनहय्या आब-ए-जमन के अंदर

इंशा अल्लाह ख़ान




ग़ुंचा-ए-गुल के सबा गोद भरी जाती है
एक परी आती है और एक परी जाती है

इंशा अल्लाह ख़ान