दोपहर की धूप में मेरे बुलाने के लिए
वो तिरा कोठे पे नंगे पाँव आना याद है
हसरत मोहानी
दिलों को फ़िक्र-ए-दो-आलम से कर दिया आज़ाद
तिरे जुनूँ का ख़ुदा सिलसिला दराज़ करे
हसरत मोहानी
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दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया
साग़र को रंग-ए-बादा ने पुर-नूर कर दिया
हसरत मोहानी
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