दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया
साग़र को रंग-ए-बादा ने पुर-नूर कर दिया
मानूस हो चला था तसल्ली से हाल-ए-दिल
फिर तू ने याद आ के ब-दस्तूर कर दिया
गुस्ताख़-दस्तियों का न था मुझ में हौसला
लेकिन हुजूम-ए-शौक़ ने मजबूर कर दिया
कुछ ऐसी हो गई है तेरे ग़म में मुब्तिला
गोया किसी ने जान को मसहूर कर दिया
बेताबियों से छुप न सका माजरा-ए-दिल
आख़िर हुज़ूर-ए-यार भी मज़कूर कर दिया
अहल-ए-नज़र को भी नज़र आया न रू-ए-यार
याँ तक हिजाब-ए-नूर ने मस्तूर कर दिया
'हसरत' बहुत है मर्तबा-ए-आशिक़ी बुलंद
तुझ को तो मुफ़्त लोगों ने मशहूर कर दिया
ग़ज़ल
दिल को ख़याल-ए-यार ने मख़्मूर कर दिया
हसरत मोहानी