जी में आता है कि दुनिया को बदलना चाहिए
और अपने आप से मायूस हो जाता हूँ मैं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
जिस क़दर महमेज़ करता हूँ मैं 'साजिद' वक़्त को
उस क़दर बे-सब्र रहने की उसे आदत नहीं
ग़ुलाम हुसैन साजिद
कभी मोहब्बत से बाज़ रहने का ध्यान आए तो सोचता हूँ
ये ज़हर इतने दिनों से मेरे वजूद में कैसे पल रहा है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
किसी की याद से दिल का अंधेरा और बढ़ता है
ये घर मेरे सुलगने से मुनव्वर हो नहीं सकता
ग़ुलाम हुसैन साजिद
किसी ने फ़क़्र से अपने ख़ज़ाने भर लिए लेकिन
किसी ने शहरयारों से भी सीम-ओ-ज़र नहीं पाए
ग़ुलाम हुसैन साजिद
लौट जाने की इजाज़त नहीं दूँगा उस को
कोई अब मेरे तआक़ुब में अगर आता है
ग़ुलाम हुसैन साजिद
मैं एक मुद्दत से इस जहाँ का असीर हूँ और सोचता हूँ
ये ख़्वाब टूटेगा किस क़दम पर ये रंग छूटेगा कब लहू से
ग़ुलाम हुसैन साजिद